झारखंड में लालटेन! सात में से छह फुस्स और अब 14 सीट की दावेदारी

भाजपा को हटाने की बेचैनी में सीटों का बंदरबांट

झारखंड में कांग्रेस -राजद के पास ना तो कोई चेहरा है और ना ही  मजबूत सांगठनिक ढांचा. इन्हे अपने हिस्से की सीट पर जीत के लिए भी हेमंत और कल्पना सोरेन का चेहरा और झामुमो के आधार वोट की जरुरत पड़ती है,  नहीं तो सूपड़ा साफ नजर आता है.  

रांची: वर्ष 2019 के विधान सभा चुनाव में गोड्डा, कोडरमा, देवघर, छतरपुर, हुसैनाबाद, चतरा और विश्रामपुर सहित कुल सात सीटों पर चुनाव लड़ कर एक पर जीत हासिल करने वाली राजद की मंशा इस बार 14 सीटों पर लालटेन जलाने की है. जैसे-जैसे विधान सभा चुनाव की गतिविधियां तेज हो रही है, राजद की इस बढ़ती हसरत के कारण झामुमो की परेशानी बढ़ती जा रही है.  हालांकि अभी बाहर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है, लेकिन अंदरखाने सब कुछ सामान्य भी नहीं है.

भाजपा को हटाने की बेचैनी में सीटों का बंदरबांट

दरअसल वर्ष 2019 के मुकाबले में भी जिस तरीके से झामुमो ने कांग्रेस के खाते में 31 और राजद के हिस्से में 7 सीट देने का फैसला किया था, उसके बाद कई सियासी जानकारों के द्वारा इस पर सवाल खड़ा किया गया था. उनका आकलन था कि भाजपा को हटाने की बेचैनी में झामुमो ने बगैर जमीनी हालात का आकलन किये, सीटों का बंदरबांट कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है. राजद हो या कांग्रेस कुछ एक सीटों को छोड़,  कहीं भी झामुमो के पक्ष में वोट ट्रान्सफर करने की स्थिति नहीं है. कांग्रेस का आधार वोट तो पहले ही भाजपा निगल चुकी है, कुछ यही हालत राजद की भी है, झारखंड के दूसरे हिस्से तो दूर वह कोडरमा, चतरा और पलामू, जहां उसका पुराना जनाधार रहा है, वहां भी मौजूदा हालात में वह वोट ट्रान्सफर की स्थिति में नहीं है. जबकि झामुमो का वोट बेहद आसानी के साथ कांग्रेस और राजद के खड़ा हो जाता है.

2019  में राजद का 14 फीसदी और कांग्रेस का 50 फीसदी सक्सेस रेट

बाद में नतीजों से इसकी पुष्टि भी हुई, झामुमो के वोट बैंक के सहारे पहली बार कांग्रेस 16 के आंकड़े तक तो पहुंच गयी. लेकिन उसका स्ट्राइक रेट 50 फीसदी का रहा. यानी कांग्रेस अपने हिस्से की आधी सीट पर हार गयी. जबकि राजद सात सीटों पर चुनाव लड़ कर एक पर सिमट गयी, उसका स्ट्राइक रेट महज 14 फीसदी का रहा, दूसरी ओर 43 सीटों पर चुनाव लड़कर झामुमो 30 पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही यानि उसका सक्सेस रेट 69 फीसदी के उपर का था. झामुमो के रणनीतिकार इस बार इसी गलती को दुरुस्त करने की तैयारी में है. लेकिन इसके साथ ही कोशिश किसी भी सूरत में गठबंधन को बचाने की भी है, लेकिन गठबंधन बचाने की कीमत पर वह कांग्रेस-राजद के हिस्से उसकी सियासी जमीन से ज्यादा सीट देने को भी तैयार नहीं है. लेकिन मुश्किल यह है कि इधर कांग्रेस जेपी भाई पटेल और प्रदीप यादव को अपने साथ जोड़ कर सीटों की डिमांड कर रही है तो उधर राजद सात के बजाय 14 सीट की मांग कर दबाव बढ़ा रहा है.  जबकि झामुमो की रणनीति इस बार किसी तरह राजद को तीन से चार सीट पर सिमटाने की है. इसके बदले वह कोयलांचल में एमसीसी  ( मार्क्सवादी समन्वय समिति ) को अपने साथ जोड़कर एक प्रयोग करना चाहती है.

सबक लेने को तैयार नहीं कांग्रेस-राजद

 राजद कांग्रेस अपने इस प्रदर्शन  के सबक सीखने को तैयार नहीं है, लोकसभा चुनाव के दौरान भी राजद ने एक तरफा तरीके से पलामू से अपने उम्मीदवार को खड़ा करने का फरमान सुनाया था. ममता भुइंया की उम्मीदवारी की घोषणा रांची के बजाय पटना से की गयी थी. जबकि झारखंड में इसकी खबर भी नहीं थी.  उधर हेमंत सोरेन के जेल में रहने के कारण कांग्रेस को भी एक अवसर मिला और सात सीट की दावेदारी पर अड़ी रही.  लेकिन सामजिक समीकरणों की अनदेखी करते हुए उम्मीदवारों की घोषणा हुई,  और वह दो पर सिमट कर रह गयी और वह दो सीट भी आदिवासी बहुल सीट थी, यानी आदिवासी बहुल सीटों के बाहर कांग्रेस की हालत भी पतली हो गयी, इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस अपने बूते गैर आदिवासी मतदाताओं को भी जोड़ने में नाकाम साबित हुई. बावजूद इसके उसकी सीटों की चाहत पूरी नहीं होती. झारखंड में कांग्रेस-राजद के पास ना तो कोई चेहरा है और ना ही मजबूत सांगठनिक ढांचा. इन्हे अपने हिस्से की सीट पर जीत के लिए भी हेमंत और कल्पना सोरेन के चेहरे और झामुमो के आधार वोट की जरुरत पड़ती है, नहीं तो सूपड़ा साफ नजर आता है.  

Edited By: Devendra Kumar

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