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झामुमो का अभेद किला लिट्टीपाड़ा में कमल! छात्र नेता श्यामदेव हेम्ब्रम पर बाबूलाल का बड़ा दांव
पूरा होगा सपना या फिर से ढाक के वही तीन पात
लिट्टीपाड़ा झामुमो का वह अभेद किला है, जिसे भेदने का सपना भाजपा हर बार पालती, हर सियासी पैतरें और दांव अपनाती है, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं आती. इस हालत में सियासी पगडंडियों पर अभी सफर की शुरुआत कर रहे श्यामदेव हेम्ब्रम क्या गूल खिलायेंगे, देखने वाली बात होगी और उससे भी बड़ा सवाल होगा दानियल किस्कू के सामने होगा, जिसने वर्ष 2019 में 52,772 वोट लाकर दिनेश विलियम मरांडी के सामने मजबूत चुनौती पेश की थी.
रांची: झामुमो का अभेद किला जहां चुनाव दर चुनाव सिर्फ हार और हार मिलती रही. एक-एक कर सारे सियासी प्रयोग असफल हो गयें. सारे चेहरों की ताकत को चुनावी अखाड़े में आजमा लिया गया, लेकिन किसी भी चेहरे के बूते कमल खिलाने में कामयाबी हाथ नहीं आयी. खबर है कि अब लिट्टीपाड़ा के उस अभेद किले ध्वस्त करने के लिए बाबूलाल मरांडी ने एक नया मास्टर प्लान तैयार किया है. इस बार संताल की सियासत में छात्र नेता के रुप में पहचान स्थापित करने के संघर्ष में जुटे श्यामदेव हेम्ब्रम पर दांव लगाने तैयारी है. टिकट के लिए आश्वस्त कर श्यामदेव हेमब्रम को अपना पूरा फोकस झामुमो के इस किले को धवस्त करने पर केन्द्रित करने का निर्देश मिला है.
लिट्टीपाड़ा के सियासी संघर्ष पर एक नजर
आपको बता दें कि यह वही लिट्टीपाड़ा है, जिस किले को झामुमो का कद्दवार चेहरा साइमन मरांडी और हेमलाल मुर्मू को अपने साथ खड़ा करने के बावजूद भी भाजपा को भेदने में कामयाबी हाथ नहीं आयी. यह वही साइमन मरांडी है, जिन्होंने पहली बार 1977 में इस सीट पर झामुमो का झंडा गाड़ा था और उसके बाद लिट्टीपाड़ा झामुमो का सबसे मजबूत किला के रुप में सामने आया. एक ऐसा किला, जिस पर खुद साइमन मरांड की बगावत का भी कोई असर नहीं हुआ और साइमन मरांडी और हेमलाल मुर्मू ने घर वापसी में ही अपनी भलाई समझी. अब जिस किला को साइमन मरांडी और हेमलाल मुर्मू जैसे कद्दावर चेहरों और जमीनी संघर्ष का लम्बा अनुभव रखने वाले तपे-तपाये नेताओं को आगे कर भेदने में कामयाबी नहीं आयी. सियासत की पगडंडिया नाप रहे श्यामदेव हेम्ब्रम कितना कमाल कर पायेंगे, इसका फैसला तो चुनावी अखाड़े में ही होगा. फिलहाल इस सीट पर साइमन मरांडी के पुत्र दिनेश विलियम मरांडी झामुमो का झंडा बुलंद किये हुए हैं. हालांकि बीच-बीच में यह खबर भी आती रहती है कि इस बार झामुमो भी लिट्टीपाड़ा में नया प्रयोग करने का इरादा भी रखती है. लेकिन मौजूदा हालात में यह संभव नजर नहीं आता और एक बार फिर तीर की कमान दिनेश विलियम मरांडी के हाथ आना तय माना जा रहा है.
झामुमो से अलग होते हुए ही खत्म हुआ साइमन मरांडी का जादू
यदि हम लिट्टीपाड़ा के अब तक के सियासी संघर्ष को समटने की कोशिश करें तो 1977 में तत्कालीन विधायक मारंग मुर्मू को 149 मतों से पराजित कर साइमन मरांडी ने पहली बार झामुमो का झंडा गाड़ा था. 1980 और 1985 में भी साइमन मरांडी ने अपने जीत का कारवां जारी रखा. इसके बाद लिट्टीपाड़ा की कमान पत्नी सुशीला हांसदा के हाथ आयी. हालांकि एक फिर से वर्ष 2009 में लिट्टीपाड़ा के सियासी अखाड़े में कूदे और हेमंत सरकार में ग्रामीण विकास मंत्रालय की जिम्मेवारी की संभालने का अवसर भी मिला. लेकिन वर्ष 2014 में भाजपा में एंट्री एक बड़ी सियासी भूल साबित हुई. झामुमो के अनिल मुर्मू के हाथों करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. वर्ष 2017 आते-आते झामुमो में एक बार फिर से घर वापसी हुई, उपचुनाव में जीत भी मिली. इस जीत के साथ ही स्वास्थ्य गिरता चला गया. जिसके बाद पार्टी ने बेटे दिनेश विलियम मरांडी मोर्चे पर तैनात करने का फैसला किया.
लिट्टीपाड़ा में सुशीला हांसदा का सफर
यदि हम लिट्टीपाड़ा में साइमन मरांडी के इतर चेहरों की बात करें तो एक प्रमुख चेहरा उनकी ही पत्नी सुशीला हांसदा का है. 1976 में साइमन मरांडी के साथ शादी हुई और वर्ष 1989 में लिट्टीपाड़ा का प्रतिनिधित्व प्रदान करने का अवसर भी मिल गया, जिसके बाद लगातार चार बार विधायक बनी, वर्ष 2009 में एक बार फिर से साइमन मरांडी ने लिट्टीपाड़ा का कमान संभाला और हेमंत सरकार में मंत्री बने. 2014 में साइमन मरांडी ने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया. तो झामुमो कांग्रेस के टिकट पर हार का सामना करने वाले अनिल मुर्मू पर दांव लगाया और साइमन मरांडी जैसे कद्दावर चेहरे को भी झामुमो के अनिल मुर्मू के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा.
2017 में घर वापसी और एक बार फिर से जीत का सेहरा
2017 के उप चुनाव के वक्त एक बार फिर से साइमंड मरांडी की घर वापसी हुई और जबकि भाजपा की ओर से हेमलाल मुर्मू ने मोर्चा संभाला, लेकिन फिर से भाजपा के हिस्से निराशा हाथ लगी, जहां साइमंड मरांडी को 65,551 के साथ जीत मिली, वहीं कमल खिलाने का ख्बाव लेकर मैदान में उतरे हेमलाल मुर्मू को 52665 वोट के साथ दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा. इसके बाद गिरते स्वास्थ्य का हवाला देते हुए साइमंड मरांडी ने खुद को सियासी अखाड़े से बाहर करने का फैसला किया, इसके साथ ही लिट्टीपाड़ा की कमान बेटे दिनेश विलियम मरांडी के हाथ में सौंपने की इच्छा प्रकट की.
साइमन मरांडी और सुशीला हांसदा के बाद दिनेश विलियम मरांडी के हाथ में कमान
इस प्रकार साइमन मरांडी की तीसरी पीढ़ी दिनेश विलियम मरांडी के लिट्टीपाड़ा की कमान आयी. दिनेश विलियम मरांडी को भी जनता का भरपूर प्यार मिला, पिता साइमन मरांडी और मां सुशीला हांसदा के बाद लिट्टीपाड़ का जनता ने दिनेश विलियम मरांडी के सिर पर 2019 में 52,772 मतों के साथ जीत का सेहरा बांधा, वहीं भाजपा की ओर से मुकाबले में उतरे दानियल किस्कू को 52,772 के साथ एक बार फिर से संतोष करना पड़ा. साफ है कि लिट्टीपाड़ा झामुमो का वह अभेद किला है, जिसे भेदने का सपना भाजपा हर बार पालती, हर सियासी पैतरें और दांव अपनाती है, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं आती. इस हालत में सियासी पगडंडियों पर अभी सफर की शुरुआत कर रहे श्यामदेव हेम्ब्रम क्या गूल खिलायेंगे, देखने वाली बात होगी और उससे भी बड़ा सवाल होगा दानियल किस्कू के सामने होगा, जिसने वर्ष 2019 में 52,772 लाकर दिनेश विलियम मरांडी के सामने मजबूत चुनौती पेश की थी.