साक्षात्कार: पशुओं की हिंसा के डाटा की जगह जब पशुओं के खिलाफ होने वाली हिंसा का डाटा देने से खत्म होगी दूरियां: चारू खरे

लखनऊ के साथ-साथ कानपुर और अयोध्या में भी काम कर रही है आसरा द हेल्पिंग हैंड्स

वह परिस्थितियां जब किसी इंसान या बेजुबान के लिए मुश्किल समय हो सकता है तो उन्हें एक साथ प्रदान करने के उद्देश्य और सोच के साथ ही इस सफर की शुरूआत हुई। द हेल्पिंग हैंड्स नाम रखने का भी ख्याल वहीं से आया था ताकि उन्हें मदद भी मिले।

राम की नगरी अयोध्या में जन्मी और देश के सबसे बड़े प्रदेश की राजधानी लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बनाने वाली चारू खरे लखनऊ की उन चंद सबसे खूबसूरत शख्सियतों में से एक है जो बदलते दौर में सिर्फ इसलिए बेजुबानों की आवाज बन जाती हैं क्योंकि उन्होंने अपने पिता को सिर्फ इसलिए खो दिया क्योंकि जिस समय उन्हें अपनी जान बचाने के लिए सबसे ज्यादा लोगों के सहारे की जरूरत थी तो कोई उन्हें बचाने यानी अपना हेल्पिंग हैंड्स देने के लिए आगे नहीं आया। टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स जैसे देश की जानी-मानी प्रतिष्ठित मीडिया संस्थाऩों की नौकरी छोड़कर नए सफर की शुरूआत कर बीते 4 सालों में अपनी बहनों के साथ बचपन में अपने माता-पिता से मिले बेहद खूबसूरत संस्कारों के कारण आसरा: द हेल्पिंग हैंड्स अब किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। समृद्ध झारखंड के लिए चारू खरे से बात की निवेदिता झा ने, इस बातचीत के संपादित अंश: 

समृद्ध भारत: आसरा द हेल्पिंग हैंड्स की शुरूआत कैसे हुई ?

चारू खरे: मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या में जन्में होने के कारण वह मेरी मातृभूमि है तो उत्तर प्रदेश की राजधानी और देश की सियासत का बड़ा केंद्र लखनऊ मेरी कर्मभूमि है। मीडिया की पढ़ाई करने और उसका बैकग्राउंड होने के कारण टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में नौकरी करने का मौका लेकिन साल 2020 में अपने जीवन में हुई सबसे बड़ी घटना में जमीन विवाद को लेकर अपने पिता की पहले पीट-पीटकर हत्या और फिर बॉडी को जला देने की घटना के कारण मीडिया का साथ पीछे छूट गया। अगले छह महीनों तक अपने पिता के लिए न्याय की लड़ाई लड़ते लड़ते ही ख्याल आया कि कैसे जब पापा को जब सबसे ज्यादा हेल्पिंग हैंड्स की जरूरत थी तो एक भी लोग उनकी मदद को सामने नहीं आए। ऐसे में वह परिस्थितियां जब किसी इंसान या बेजुबान के लिए मुश्किल समय हो सकता है तो उन्हें एक साथ प्रदान करने के उद्देश्य और सोच के साथ ही इस सफर की शुरूआत हुई। द हेल्पिंग हैंड्स नाम रखने का भी ख्याल वहीं से आया था ताकि उन्हें मदद भी मिले।   

 

समृद्ध भारत: एनजीओ शुरू करने की प्रेरणा कहां से मिली ?

चारू खरे: इसकी सबसे बड़ी प्रेरणा मेरे पापा और मम्मी ही रहे हैं क्योंकि बचपन से ही अपने घर के माहौल को मैनें एनीमल फ्रेंडली वाला देखा है साथ ही पापा भी हमेशा से एनीमल लवर रहे थे। अपने कामकाज के अलावा उनका ज्यादातर समय इन बेजुबानों की मदद व उनकी देखभाल करने में बीतता था। सामाजिक कार्यों में पापा काफी बढ़चढ़ कर भाग लेते थे। उनकी एक बड़ी इच्छा भी थी कि वह इनके लिए एक बड़ा शेल्टर होम बनवाएं हालांकि जीते-जी उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई लेकिन अब आसरा: द हेल्पिंग हैंड्य के माध्यम से इस अधूरी ख्वाहिश को पूरी करने की कोशिश अब हम सभी कर रहे हैं। बचपन की एक घटना भी आज तक मेरे जेहन में मौजूद है कि कैसे एक गाय रोज हमारे घर आती थी और घरवाले उन्हें रोज कुछ न कुछ देते थे लेकिन एक दिन यह हुआ कि किसी ने उस गाय पर एसिड फेंक दिया। इसे देखकर पापा और मम्मी बहुत दुखी हुए थे और उन्होंने उस गाय की काफी मदद की थी। कई छोटी-छोटी घटनाएं, बातें ही हमें इन बेजुबानों के लिए काम करने को प्रेरित करती रही हैं और आज जिस मुकाम पर यह हो रहा है, उसे देखकर काफी खुशी मिलती है।  

समृद्ध भारत: इन बेजुबान जरूरतमंदों तक पहुंचनें की प्रक्रिया कैसे होती है ?

चारू खरे: मुख्य रूप से आसरा द हेल्पिंग हैंड्स संस्था अपने हेल्पलाइन के जरिए पूरे एक चेन के साथ अपने काम को अंजाम देता है। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म के जरिए हेल्पलाइन नंबर को लोगों तक पहुंचाने के जरिए ही ऐसे बेजुबानों की तलाश होती है, जिन्हें मदद की जरूरत है। इसके अलावा बड़ी-बड़ी संस्थाएं जैसे पेटा इंडिया या पीपल फॉर एनीमल ट्रस्ट जैसे भी हैं, जो अपने कामों के लिए छोटे-छोटे एनजीओ की मदद लेते हैं। इसी तरह एनीमल लवर मेनका गांधी जैसे लोग भी हैं जो अपने कामों में छोटी-छोटी संस्थाओं की मदद लेते हैं और हम अपने कामों को अंजाम तक पहुंचाते हैं। हमारी संस्था या टीम फिलहाल अयोध्या, कानपुर और लखनऊ में काम कर रही है। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि ऑउट ऑफ द रीच जाकर काम करना हमारी मजबूरी होती है और हम ऐसा करते हैं। जैसा अभी हाल ही में सहारपुर में हुआ है, 700 किलोमीटर दूर जाकर हमारी टीम ने पहले जरूरतमंद पशु को रेस्क्यू किया और उसे लेकर लखनऊ आए, यहां अपने पशु चिकित्सकों के माध्यम से उसका उपचार कर उसे वापस सहारनपुर छोड़कर आए क्योंकि किसी भी पशु को उसके मूल स्थान से अलग करना कानूनन जुर्म है। इस प्रकार हमारा एक काम ऐसे जरूरतमंद बेजुबानों का रेस्क्यू करना और उसे उपचार उपलब्ध कराना है। 

दूसरा मुख्य काम जो हमारी संस्था करती है, वह है स्ट्रीट डोमेस्टिक एनीमल को घर दिलाना यानी उऩका एडॉप्शन कराना। इसके लिए एडॉप्शन कैंप का आयोजन किया जाता है। लखऩऊ में अब तक ऐसे 5-6 कैंपों का आयोजन हो चुका है। इन कैंपों का आयोजन मुख्य रूप से मेले में होता है क्योंकि वहां बड़ी संख्या में अलग-अलग प्रकार के लोग आते हैं और उन्हें अपनी जरूरत के अनुसार अलग-अलग प्रकार के PET एनीमल अपने लिए मिल जाते हैं। एडॉप्शन के लिए भी पूरी निर्धारित प्रकिया अपनाई जाती है, इसके अंतर्गत सभी एडॉप्टर से एक फॉर्म को भरवाया जाता है जिसमें निर्धारित सभी मानकों के पालन करने की सहमति ली जाती है ताकि एडॉप्शन के बाद कोई भी अपनी मर्जी से फिर ऐसे बेजुबानों को बेसहारा न छोड़ दे। 

तीसरा मुख्य काम जो वर्तमान समय में महत्वपूर्ण हो चला है वह असहाय या निराश्रित बेजुबानों के बीच आए दिन होने वाले आपसी संघर्ष के मामलों को लेकर है या फिर उनकी ओर से लोगों को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं भी सामने आती है और इसमें कई बार लोगों की मौत होने या उनके चोटिल होने के मामले आते हैं। तो वहीं कई बार बेजुबानों की मौत होने की खबरें भी आती रहती है, तो इसे रोकने या कम करने के लिए हमारी टीम स्कूल-कॉलेजों में अवेयरनेस कैंपेन चलाती है जिसमें बच्चों या लोगों को यह बताया जाता है कि कैसे वह इन स्ट्रीट एनीमल से अपनी सुरक्षा कर सकते हैं या उनसे फ्रेंडली हो सकते हैं। इसके अलावा पशुओं के साथ होने वाली हिंसा रोकने की दिशा में भी हम काम करते हैं जिसमें ऐसा करने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाना और उन्हें कानून के तहत सजा दिलावाना मुख्य है। हालांकि इस दौरान कई बार जरूरत पड़ने पर लोगों की काउंसलिंग भी की जाती है कि उन्हें इन बेजुबानों के साथ अपना व्यवहार कैसा रखना है। अब तक संस्था ने 60-70 मामलों में प्राथमिकी दर्ज करवाया है या फिर काउंसलिंग करवाया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि लोग अब धीरे-धीरे जागरूक हो रहे हैं। जिसका परिणाम है कि इस तरह का काम करने वाले एनजीओ की संख्या भी बढ़ी है। 

समृद्ध भारत: बेजुबानों के खिलाफ हुई हिंसा के मामलों को दर्ज करने में पुलिस की भूमिका कितनी संतोषजनक होती है या फिर हिंसा करने वालों के खिलाफ पुलिस क्या एक्शन लेती है ?

चारू खरे: पुलिस का सहयोग अक्सर हमें मिलता है और उनकी ओर से होने वाली कार्रवाई कई बार संतोषजनक भी होती है तो कई बार सहयोगात्मक नहीं भी होता है क्योंकि कई बार पुलिस यह भी सोचती है कि हम क्या कर रहे हैं, कुत्ते-बिल्ली बचा रहे हैं और इससे क्या ही होगा। कई बार पुलिस के बेतुके सवालों से भी हमें दो-चार होना पड़ता है कि मामले सिर्फ हमसे ही जुड़े नहीं हो सकते हैं बल्कि वह कम्युनिटी एनीमल से भी जुड़े होते हैं या हो सकते हैं और ऐसे मामलों में भी बेजुबानों के साथ किसी भी प्रकार की हिंसा, दुर्व्यवहार या उन्हें उनके मूल स्थान से हटाकर कहीं और भेज देना भी एक तरह से कानूनन जुर्म है और ऐसा नहीं करना है क्योंकि कई बार इन प्रावधानों या कानूनों से पुलिस पदाधिकारी भी जागरूक नहीं होते हैं कि हिंसा केवल घरेलू पशुओं से ही नहीं बल्कि सामुदायिक पशुओं से भी क्रूरता कानूनन जुर्म है। ऐसे मामलों में कई बार हमें पूरे प्रमाणों व कानूनी प्रावधानों के सबूतों के साथ पुलिस के सामने जाना पड़ता है और अपनी बात रखनी पड़ती है जिसके बाद पुलिस वाले बातों को मानने के लिए बाध्य होते हैं। 

समृद्ध भारत: इन बेजुबानों की मदद जैसे नेक काम करने के दौरान सोसायटी, परिवार या दोस्तों की कैसी प्रतिक्रिया देखने को मिलती है, समर्थन कैसा होता है?

चारू खरे: इस तरह के कामों में निश्चित रूप से एक जैसी प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिलती है बल्कि अलग-अलग तरीके से लोग इसको रिस्पांड करते हैं। लेकिन सबसे बड़ा रोल परिवार का होता है कि परिवार का सपोर्ट कैसा मिलता है, ऐसे कामों में तो हमारे लिए अब तक का सफर काफी शानदार रहा है क्योंकि पहले दिन से ही परिवार के लोगों ने हमारा खूब सपोर्ट किया है। बचपन से जो चीजें हमारे परिवार से जुड़ी हुई हैं उसे हम आगे लेकर बढ़ रहे हैं, इसका हमें पूरा संतोष है और हम खुश भी हैं कि पापा के नहीं होने के बावजूद भी उऩका काम आजतक नहीं रूका है। ऐसे कामों में यह बहुत जरूरी होता है कि हम यह अंतर कर सकें कि कौन सा काम हम सही कर रहे हैं और क्या सही नहीं कर रहे हैं क्योंकि जो काम हम सही करते हैं तो उससे हमें आत्मिक संतुष्टि मिलती है, दिल को सुकून मिलता है, नींद अच्छी आती है। तो ऐसी परिस्थितियों में अपने विल पॉवर को बनाकर रखने की चुनौती सबसे महत्वपूर्ण होती है। यह देखना जरूरी नहीं होता है कि कौन आपके खिलाफ और क्यों खड़ा है। 

 

लेकिन यह जरूर है कि कई बार लोगों को कई प्रकार की परेशानियां होती हैं खासकर उस दौरान जब स्ट्रीट एनीमल को खिलाने का काम लोग या एनीमल लवर करते हैं तो कुछ लोग ऐसा करने से उन्हें रोकते हैं। कई बार लोग बेवजह इन बेजुबानों को मारने का भी काम करते हैं जबकि वह उन्हें किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं खड़ा करता है, तो इन परिस्थितियों में काम करना और वैसे लोगों को समझाने की बड़ी चुनौती होती है कि वह इन पशुओं के खिलाफ किसी प्रकार की कोई हिंसा नहीं करें क्योंकि इस तरह के लगातार व्यवहार से वह जानवर थोड़े समय में हिंसक हो जाता है और नुकसान पहुंचाने लगता है। तो यह जरूरी है कि पशुओं के साथ होने वाली हिंसा को रोकने व वैसा करने वालों को सबक सिखाने के लिए एक मजबूत पशु संरक्षण कानूनो की जरूरत है क्योंकि जब तक मजबूत कानून नहीं होगा, उसका अनुपालन सही ढंग से नहीं होगा तब तक ऐसी घटनाओं को रोकने या उन्हें करने वालों की मानसिकता कम नहीं होगी। हम सभी के लिए जरूरी है कि हम अपने एनीमल के लिए एक फ्रेंडली माहौल बनाएं क्योंकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक आदेश में कहा है कि स्ट्रीट एनीमल को एक प्वाइंट पर खाना देना कोई जुर्म नहीं है बल्कि ऐसा करने वालों को रोकना जुर्म है, उन्हें परेशान करना जुर्म है। कई बार हमें काम करने के दौरान लोगों की धमकियां भी मिली है और लोग भीड़ के रूप में काम नहीं करने भी देते हैं खासकर जब रेस्क्यू जैसे कामों को करना होता है। ऐसी परिस्थितियों में लोगों की बातों को मानने के अलावा हमारे पास कोई रास्ता नहीं होता है क्योंकि लोग टीम की गाड़ियों को घेर लेते हैं। लेकिन फिर भी यही कहना सही है कि लोग क्या कहते हैं आपके कामों को लेकर, यह जरूरी नहीं है बल्कि आप अपने कामों को किस तरह से करते हैं, यह महत्वपूर्ण है। मीडिया या जर्नलिज्म छोड़ने को लेकर लोगों ने कई बार कहा तो हमेशा से मेरा मानना रहा है कि जर्नलिज्म मैंने नहीं छोड़ा है क्योंकि यह एक क्रांति है और यह क्रांति अब अलग तरीके से लोगों के जीवन में व उनकी सोच में लाने का कर रहे हैं। इसमें मुझे मेरी बहन पूर्ना खरे और दोस्त राहुल का भी साथ मिल रहा है। 

समृद्ध भारत: इन बेजुबान जरूरतमंदों की मदद करने में आर्थिक मदद कैसे और किससे मिल रही है ?

चारू खरे: हमें फिलहाल सरकार से कोई मदद नहीं मिलती है क्योंकि इसके लिए सरकारी काम को लेना पड़ता है। ऐसे में फिलहाल अपने कामों के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से हम लोग क्राउड फंडिंग करते हैं हालांकि इससे भी हमारी जरूरत पूरी नहीं हो पाती है। तो ऐसी परिस्थिति में हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए फ्रीलॉसिंग का काम करते हैं, जिसका एक हिस्सा हम इन कामों के लिए जमा करने का काम करते हैं। फिलहाल हमारे पास बिल्लियां, डॉग्स और मंकी हैं जिसकी देखभाल कर रहे हैं।     

समृद्ध भारत: आने वाले समय के लिए आपकी और आपके टीम की क्या प्लानिंग है ?

चारू खरे: फिलहाल यह काम हमारी टीम एक किराए के जगह को लेकर कर रही है और सीमित जगह होने के कारण सभी प्रकार के बेजुबानों की मदद हम नहीं कर पा रहे हैं खासकर बड़े जानवरों के मामले में परेशानियां आ रही है तो आने वाले समय में बड़ा शेल्टर बनाना मुख्य प्लानिंग है। इसके अलावा बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में काम करना भी हमारा एक और मकसद है ताकि सही समय पर सही ढंग की शिक्षा हम बच्चों को दे सकें और इसके जरिए उन्हें बेजुबानों के प्रति हिंसा की भावना को दूर करने में मदद कर पाएं तो निश्चित रूप से आने वाले समय में इस तरह की घटनाओं में भी काफी कमी आएगी क्योंकि हमें आसानी से यह जानकारी तो मिल जाती है कि कितने लोगों को कुत्ते ने काटा लेकिन कितने लोगों के खिलाफ पशु हिंसा के मामले हैं, इसका कोई डाटा नहीं मिलता है तो इस गैप को दूर कर सकें और हम सभी एनीमल्स के लिए एक बेहतर और फ्रेंडली माहौल बना सकें, यह मुख्य काम है।  

Edited By: Samridh Bharat

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